देखी है हज़ारों महफ़िलें

देखी है हज़ारों महफ़िलें पर ये फिज़ा नहीं देखा,
कश्ती के मुसाफ़िर ने कभी समुंदर नहीं देखा,
बेकरारी तो रहती ही है हमेशा दिल पे मेरे,
आबो हवा ऐसा मंज़र नहीं देखा॥

बहुत कहते थे, हमेशा याद आओगे,
कहते थे, तन्हाइयों में मुझे पाओगे,
ना उसकी खबर ना कोई उसका पैगाम,
ऐसे भुला देगा कोई मंज़र नहीं देखा॥

सितम तो उसने कोई भी की ही नहीं,
आँखों में नमीं कभी थी ही नहीं,
जिस राह में फिरता मिल जाऊँ मैं,
दोबारा फिर कभी ऐसा डगर नहीं देखा॥

तेरा नाम का मेरे नाम से जुड़ जाना,
वो शामों शहर तेरी यादों का चले आना,
बदकिस्मती है तेरे नाम का गैरों से जुड़ जाना,
मोहब्बत में हो ये क़लाम, कभी ऐसा अंज़ाम नहीं देखा॥